बौद्ध धर्म के अनुयाइयों का पर्व लोसर, बौद्ध धर्म के अनुसार नया वर्ष, बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है लोसर पर्व, लोसर पर युद्ध विराम के लिए की गई विशेष प्रार्थना।

बौद्ध धर्म के अनुयाइयों का पर्व लोसर, बौद्ध धर्म के अनुसार नया वर्ष, बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है लोसर पर्व, लोसर पर युद्ध विराम के लिए की गई विशेष प्रार्थना।
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देहरादून- उत्तरकाशी : लोसर एक ऐसा पर्व हैं. जिसे बौद्ध धर्म के मानने वाले लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. बुध्दिजम के हिसाब से यंहा एक नया वर्ष हैं. जिसे लोसर कहा जाता हैं. लोसर का हिंदी में अनुवाद किया जाय. तो इसका अर्थ होता हैं. पुराने साल को छोड़ कर नये साल में प्रवेश करना.

इस पर्व में भारतीय सस्कृति भी देखने को मिलती हैं. ये लोसर पर्व तीन से चार दिन का होता हैं. इस पर्व में भारतीय सस्कृति कि तरह दीपावली, होली व् भाई चारा देखने को मिलता हैं.भगवान बुध्द को मानने वाले व् उनका अनुशरण करने वाले आज लगभग पुरे विश्व में कहीं न कंही देखने को मिलते हैं. बुध्द के विचारो को अपने जीवन में लेने वाले लोग उत्तर भारत में भी हैं. जो बुध्द के विचारो को अपने जीवन शैली में कि वर्षो से उतारे हुए हैं.

ये लोसर पर्व बुध्द के अनुयाईयो के लिए मुख्य होता हैं. जो युवा वर्ग कई समय समय से बाहर किसी कार्य में व्यस्थ रहते हैं. इस लोसर पर्व में अपने घर पहुंच कर पुरे परिवार के साथ लोसर पर्व मनाते हैं। उत्तरकाशी जिले के वीरपुर डुंडा व् बगोरी गाँव में बड़ी संख्या में बौध्द धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं. जो इस लोसर पर्व को मनाते हैं. ये बौध्द धर्म को मानने वाले लोग हिमालयन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश व् तिब्बत से आये. जो उत्तराखंड के कई जिलों में बसे हैं. इनमे से एक उत्तरकाशी जिले के डुंडा ब्लाक के वीरपुर व् भटवाड़ी ब्लाक के बगोरी गाँव में बसे हैं. आज भी इन्होने अपनी सस्कृति को संभाले रखा हैं

नैनीताल सुखनिवास स्थित बौद्ध मठ में तिब्बती वर्ष का नया साल लोसर के रूप में धूमधाम से मनाया गया, लोसर पर्व पर रूस यूक्रेन युद्ध पर जल्द विराम लगने पर विशेष प्रार्थना अर्चना की गई।


नैनीताल स्थित बौद्ध मठ में लोसर पर्व के अवसर पर आज सुबह से ही मठ के धर्मगुरुओं द्वारा विशेष पूजा अर्चना की गई, उसके पश्चात दलाई लामा के चित्र पर माल्यार्पण किया गया, व सैकड़ों दिए जलाकर विश्व शांति व यूक्रेन रूस युद्ध पर जल्द विराम लगने के लिए समस्त तिब्बती समुदाय के लोगों ने प्रार्थना की, इस मौके पर तिब्बती एसोसिएशन के अध्यक्ष पेमा सिथर ने बताया इस वर्ष 2149 वां नया साल मनाया जा रहा है ,जो की सम्राट वर्ष के रूप में मनाया गया है नव वर्ष के मौके पर 3 दिन का उत्सव मनाया जाता है जिसमें प्रथम दिन घर में रहकर नव वर्ष मनाया जाता है, व दूसरे दिन एक दूसरे के घर जाकर प्रार्थनाएं करके शुभकामनाएं दी जाती है, और तीसरे दिन बौद्ध मठ में एकत्रित होकर सभी लोग अपने पारंपरिक परिधान में आकर पूजा अर्चना में शामिल होकर पारंपरिक परिवेश में पहुंचकर दीप प्रज्वलित करने के साथ सामुहिक तौर पर देवी देवताओं को अन्न का भोग लगाते है, वह एक दूसरे को नववर्ष की बधाइयां देते हैं साथ पारंपरिक नृत्य व गायन से अपनी तिब्बत की यादों को ताजा करते हैं इस मौके पर तिब्बती यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष तेनज़िंग छोपेल,तेनजिंग जिग्में,तेनजिंग छिरिंग,तेनजिंग दावा,छिरिंग तोपगेल,यशी थुपटेंन,थुंदुप छिरिंग, छिरिंग पेलकी,तेनजिंग नोर्जुल,नामंकन डोलमा,लेकि डोलमा, छिरिंग भुति, रिनजिंग छोजुम।

 

 

 

Rupesh Negi

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