मकर संक्रांति के पर्व पर भक्तों ने लगाई आस्था कि डुबकी, आज मनाई जाएगी मकर संक्रांति,जानिए एक दिन बाद क्यों मनाई जाएगी मकर सक्रांति।

मकर संक्रांति के पर्व पर भक्तों ने लगाई आस्था कि डुबकी, आज मनाई जाएगी मकर संक्रांति,जानिए एक दिन बाद क्यों मनाई जाएगी मकर सक्रांति।
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देहरादून– मकर संक्रांति 15 जनवरी को है ।
संक्रांति काल का अर्थ है एक से दुसरे में जाने का समय अंग्रेजी में इसे ट्रांजिशन भी कह सकते है, हम हमेशा से 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाते आ रहे हैं इसलिए उनको इस बार मकर संक्रांति का 15 जनवरी को होना कुछ विचित्र लग रहा है है, लेकिन अब यह 2081 तक 15 जनवरी को ही होगा।

जैसा कि हम सब जानते हैं कि- सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश (संक्रमण) का दिन “मकर संक्रांति” के रूप में जाना जाता है, ज्योतिषविदों के अनुसार प्रतिवर्ष इस संक्रमण में 20 मिनट का विलंब होता जाता है, इस प्रकार तीन वर्षों में यह अंतर एक घंटे का हो जाता है तथा 72 वर्षो में यह फर्क पूरे 24 घंटे का हो जाता है ।

सायं 4 बजे के बाद संध्याकाल माना जाता है और भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार संध्या काल के बाद सूर्य से सम्बंधित कोई भी गणना उस दिन न करके अगले दिन से की जाती है, इस कारण वास्तव में मकर संक्रांति 2008 से ही 15 जनवरी को हो गई थी, लेकिन सूर्यास्त न होने के कारण 14 जनवरी को ही मानते आ रहे थे।

2023 में संक्रांति का समय 14 जनवरी की शाम को 9.35 का है, अर्थात सूर्यास्त हो चुका है इसलिए 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति मनाई जाएगी। वैसे तो 2008 से 2080 तक मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जानी चाइये थी। 2081 से मकर संक्रांति 16 जनवरी को होगी, वैसे उसके बाद भी कुछ लोग कुछ बर्ष तक 15 जनवरी को मनाते रहेंगे।
संक्रांति का चन्द्र महीनों की तिथि से कोई मतलब नहीं है
संक्रांति की अपनी गणना है जो कि अंग्रेजी से संयोग कर जाती है ।
72 साल की रेंज में संक्रांति चक्र एक दिन बढ़ जाता है
275 में ये 21 दिसम्बर को थी जो कि अब 15 जनवरी तक आ गयी है।
1935 से 2008 तक मकर संक्रांति 14 जनवरी को रही और 1935 से पहले 72 साल तक यह 13 जनवरी को रही होगी।

मकर संक्रांति के दिन बागेश्वर में पर भव्य उतरायणी मेला लगता है, उतरायणी मेले मे धार्मिक अनुष्ठान में संगम के पहले दिन के स्नान को प्रथम स्नान कहा जाता है, स्नान के बाद मन्दिर के अन्दर शिव को पानी अर्पित करना आवश्यक माना जाता है, इस धार्मिक अनुष्ठान को तीन दिनो तक किया जाता है, जिसे तिमाघी कहा जाता है, बागेश्वर के बागनाथ मन्दिर के सरयू, गौमती घाटो में मेलाथियो और भक्तों से आस्था कि डुबकी लगाई है, बागनाथ मंन्दिर में मुख्य रूप से बेल पत्र से पूजा होती है, कुमकुम, चन्दन, और बतासे चढाने कि भी परम्परा है, खीर और खिचड़ी का भोग लगाया जाता है, बागनाथ मंन्दिर में प्रधान पुजारी रावल जाती के लोग होते है, जबकि अनुष्ठान कराने वाले पुरोहित जोशी और पांडे जाति के बहामण होते है।

Rupesh Negi

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