क्यों कराया गया दून में 400 करोड़ के काबुल हाउस को खाली?विरोध के बीच काबुल हाउस की जमीन से हटवाया कब्जा।

क्यों कराया गया दून में 400 करोड़ के काबुल हाउस को खाली?विरोध के बीच काबुल हाउस की जमीन से हटवाया कब्जा।
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देहरादून– कभी अफगानी शासक की हुकूमत के लिए जाने, जाने वाले काबुल हाउस पर प्रशासन ने बड़ी कार्रवाई की है। शत्रु संपत्ति घोषित होने के बाद काबुल हाउस को पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में खाली करवाया गया जहां सालों से रह रहे लोगों ने सरकार से कुछ समय मांगा है। लेकिन गुरूवार को प्रशासन और पुलिस की टीमों ने मौके पर जाकर यहां रह रहे 16 परिवारों को खाली कराने का काम शुरू कर दिया।

लंबे समय से विवादों में रही देहरादून की काबुल हाउस प्रॉपर्टी पर आखिर में प्रशासन ने खाली करवाने की कार्रवाई शुरू की है । गुरुवार को सबेरे ही भारी संख्या में पुलिस बल और प्रशासन के लोग काबुल हाउस को खाली करवाने पहुंचे। जिसमें कई घरों के समान को बाहर फेंका गया और घरों पर सीलिंग की कार्रवाई प्रशासन द्वारा की गई। इस दौरान काबुल हाउस में सालों से रह रहे पूजा का घर भी प्रशासन ने खाली करवाया और सील किया। पूजा का परिवार इस इलाके में पिछले सौ सालों से रह रहा है, पूजा की दिसंबर में शादी है जिसकी तैयारियां परिवार जोरों से कर रहा था। लेकिन अब घर न होने से कहां शादी होगी, ये संकट भी सामने आ गया है। वहीं अन्य लोगों का आरोप है कि उनको घर खाली करने के आदेश कुछ दिन पहले मिले और अब उनके पास किसी भी प्रकार की छत नहीं है ऐसे में अब वो कहां जाएं।

काबुल हाउस साल 1879 में राजा मोहम्मद याकूब खान ने बनाया था, और उनके वंशज बंटवारे के दौरान पाकिस्तान चले गए थे, जिसके बाद से ही काबुल हाउस के कई लोगों ने फर्जी दस्तावेज तैयार कर यह जमीन अपनी होने का भी दावा किया था। लंबे समय से काबुल हाउस में 16 परिवार रह रहे थे। क्योंकि पिछले 40 सालों से काबुल हाउस का मामला जिलाधिकारी कोर्ट में लंबित है। जिस पर फैसला सुनाते हुए डीएम ने काबुल हाउस को शत्रु संपत्ति घोषित कर उसमे रहने वाले लोगों को खाली करने का नोटिस जारी किया और आज सीलिंग की कार्रवाई शुरू हुई।

शत्रु संपत्ति को खाली करवाने के लिए प्रशासन की टीम जुटी हैं। लेकिन अब यहां रहने वाले लोगों के सामने संकट खड़ा हो गया कि आखिर में वह जाए तो जाए कहां। अब कोई ठिकाना उनके पास नहीं है।

यहां ये भी जानना महत्वपूर्ण है कि शत्रु संपत्ति क्या होती है और इस पर किस तरह की कार्रवाई होती है। 1947 में देश का बंटवारा, 1962 में चीन और 1965 और 71 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग में या फिर उसके बाद कई लोग भारत छोडकर पाकिस्तान या फिर चीन चले गये, ऐसे नागरिकों को भारत सरकार शत्रु मानती है और उनकी संपत्तियों की देखरेख के लिए कस्टोडियन की नियुक्ति की गई है। साल 1968 से शत्रु संपत्ति अधिनियम लागू है। कस्टोडियन ऑफ एनिमी प्रॉपर्टी विभाग को ऐसी संपत्तियों को अधिग्रहण करने का अधिकार दिया गया है। और इसी के तहत देहरादून में 400 करोड़ के काबुल हाउस में रह रहे 16 परिवारों पर प्रशासन ने अपनी कार्रवाई की है।

काबुल हाउस की जमीनों में भी खेल हुआ है। कुछ साल पहले सहारनपुर में प्रॉपर्टी से जुड़े गैंग ने स्थानीय व्यक्ति की से मदद से यहां खाली पड़ी जमीन में प्लॉटिंग कर दी थी। फिर रजिस्ट्री कराकर प्लॉट बेच दिए। जब यह मामला सार्वजनिक हुआ तो तत्कालीन जिलाधिकारी की ओर से यहां पर सभी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी गई और प्रशासन ने अपना बोर्ड लगा दिया था। खास बात ये है कि रजिस्ट्री के आधार पर कुछ लोगों का नगर निगम में म्यूटेशन हो गया और हाउस टैक्स आने लगा। यह मामला सार्वजनिक हुआ तो नगर निगम को म्यूटेशन कैंसिल करने पड़े। वहीं अब जिन लोगों को यहां प्लॉट बेचे गए वह लोग सामने नहीं आ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक जब से रजिस्ट्री घोटाला खुला है, तो वह लोग भी डर रहे हैं, कहीं अगर सामने आते हैं तो फंस ना जाए। यही कारण है कि ये मामला अभी दबा हुआ है।

मंगला देवी स्कूल से करनपुर चौकी तक है काबुल हाउस

करनपुर वार्ड से पूर्व पार्षद विनय कोहली के मुताबिक काबुल हाउस का एरिया मंगला देवी स्कूल से लेकर करनपुर चौकी तक हैं। उनके मुताबिक यहां 18 परिवार रह रहे थे। साल 1984 में कोर्ट के आदेश पर दो परिवारों की यहां रजिस्ट्री हुई थी, अभी काबूल हॉउस की जमीन के वर्तमान कीमत जोकि खाली कराई गई है अभी 150 करोड़ रूपये से ज्यादा है।

करनपुर वार्ड से पूर्व पार्षद विनय कोहली का दावा है कि फैज मोहम्मद जो एक रजवाड़ा था और जिसकी काबुल हाउस की जमीन बतायी जाती है। साल 1942 में फैज मोहम्मद ने उक्त जमीन अपनी बहन वजीरा बेगम को दे दी। साल 1947 में विभाजन पर ये पूरा परिवार पाकिस्तान चला गया। उसके बाद काबुल हाउस शत्रु संपत्ति होते हुए प्रशासन के निहित हो गई। 1947 के बाद से आईटीआई गर्ल्स का स्टाफ इस कबूल हाउस में रहने लगा। कई लोग रिटायर भी हो गए। कोहली ने बताया कि बताया जाता है कि अफगान का बादशाह याकूब जो कि मंगला देवी स्कूल के परिसर में रहता था।

इन्हें हुए थे बेदखली के आदेश

भगवती प्रसाद उनियाल पुत्र स्व. आर उनियाल, धन बहादुर राणा पुत्र जंग बहादुर राणा, विनोद कुमार पंत पुत्र हरि नन्द, मनीष सादिया पुत्र दर्शन सिंह, बीना कुमारी पत्नी जबल सिंह, सौरभ गौड पुत्र स्व. आशुतोष गौड, नितिन पुत्र जन्बल सिंह, जब्बल सिंह पुत्र स्व. बुद्धिराम, बच्ची देवी मिनाक्षी पत्नी स्व. दिगम्बर सिंह, राजमोहन पुत्र मुन्ना लाल, राजकुमार पुत्र मुन्ना लाल, कमल पुत्र मुन्ना लाल, अजय पुत्र मुन्ना लाल, संजय पुत्र मुन्ना लाल रहे।

पिछले महीने डीएम कोर्ट की ओर से काबुल हाउस में कब्जा करके रह रहे लोगों को हटाने का निर्णय लेने के चलते प्रशासन की टीम गुरुवार सुबह काबुल हाउस की जगह को खाली कराने का काम शुरू किया। विरोध के बीच कार्रवाई हुई। यहां लोगों का घरों का सामान बाहर निकालकर सील लगाकर प्रशासन ने कब्जा लिया। जिलाधिकारी कोर्ट ने ईसी रोड 15- बी स्थित काबुल हाउस की जमीन को लेकर 16 कब्जेधारियों को 15 दिन में जगह खाली करने के आदेश दिए थे। ये आदेश काबुल हाउस की शत्रु संपत्ति को लेकर बीते 17 अक्टूबर को आदेश किए गए थे। इसी क्रम में प्रशासन की टीम ने पुलिस बल की मौजूदगी में वीरवार सुबह जगह खाली कराने की कार्रवाई शुरू की। लोगों को घरों से सामान बाहर निकालने का समय दिया गया। इस बीच लोग अपने घरों से सामान निकालने के लिए जूट गए। तभी यहां काबुल हाउस की मुख्य कोठी में रहने वाले एक परिवार ने अपने मकान का ताला नहीं खोला। इस बीच उक्त परिवार के सदस्यों और पुलिस के बीच काफी नोंकझोक हुई। उक्त परिवार से एक व्यक्ति ने प्रशासन और पुलिस की टीम का काफी विरोध किया। पुलिस ने सख्ती दिखाकर मकान का ताला खुलवाया कई घंटे तक लोग अपने घरों से सम्मान निकालने में जूटे रहे और ई रिक्शा, ट्रैक्टर ट्रॉली और अन्य माध्यम से अपना सामान लेकर काबुल हाउस से बाहर गए मकान खाली होने के बाद प्रशासन की टीम घरों में सील लगाती रही। इस दौरान काबुल हाउस की दीवार के बाहर आपातकालीन सेवा 108 की एंबुलेंस भी खड़ी रही ताकि किसी को कोई दिक्कत हो तो उसको अस्पताल पहुंचाया जा सके। बता दे कि यहां कुछ लोग किराए पर भी थे।

ईसी रोड-करनपुर क्षेत्र में अफगानिस्तान निर्वासित अमीर मो. याकूब खान से जुड़े काबुल हाऊस में काबिज 16 परिवारों को वीरवार को प्रशासन ने बेदखल कर दिया। इसमें अधिकतर भू-माफिया का शिकार हुए। सहारनपुर के कई माफिया ने स्थानीय एजेंटों की मदद से फर्जी कागजात बनाने का खेल खेला। इसकी जद में अधिकतर लोग आ गए।

एक स्थानीय भूस्वामी की भूमिका पर भी प्रशासन की कड़ी नजर है। इसकी भी संभावना है कि उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाए। साथ ही कई दशकों से अत्यधिक सक्रिय रहने वाले माफिया तत्वों पर भी प्रशासन ती निगाह है। इन लोगों ने इतने अधिक फर्जीवाड़े कर रखे हैं जिसकी जानकारी सिर्फ राजस्व विभाग को ही नहीं, बल्कि दूसरी एजेंसियों को भी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि स्थानीय माफिया सहारनपुरके माफिया का एजेंट बन रखा था। उसने रजिस्ट्री फर्जीवाड़ा किया है। सोलह परिवारों से किस स्तर पर तकनीकी गलती हुई यह तो समय ही साबित करेगा। लेकिन बहुत बारीकी और चतुराई से फर्जी कागजों को तैयार किया। साथ ही साथ जटिल कानूनी सिस्टम का लाभ उठाया।

सूत्रों की मानें तो राजस्व परिषद भी इस आयाम की जांच करेगा। नीतिगत मामलों को छोड़ दें, तो यह स्थान शुरु से ही विवाद का विषय रहा है। लेकि,न अभी शत्रु सम्पति वाला मुद्दा बहुत प्रबल हो गया है, अभी राज्य सरकार ने भी तेज़ी दिखाई है, इन सभी की बेदखली कोर्ट के आदेश पर हुई है।

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Rupesh Negi

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